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ज्योतिषशास्त्र में क्या है वक्री ग्रह का मतलब और गोचर का अर्थ, जानिए

May 11 2020

Posted By:  Suuny

समय समय पर सभी ग्रह वक्री होते है | इसके साथ ही ग्रहो का कई बार गोचर भी होता है | कई बार देखने में आता है कि लोग अपनी राशि और ग्रहो को लेकर सतर्क और चिंतित होते है | वहीँ कुछ लोग ऐसे भी होते है, जिन्हे ज्योतिष के इन शब्दों का अर्थ पता नहीं होता है | ऐसे में आज हम आपको इन्ही के बारे में जानकारी देने जा रहे है कि ग्रह का वक्री होना क्या होता है ? गोचर क्या होता है ? आदि |

ग्रह का वक्री होना


ग्रह के वक्री होने का मतलब होता है, जब कोई ग्रह अपनी सामान्य चल से उलटी चाल चलने लगता है तो वह वक्री कहलाता है | बता दे सूर्य और चन्द्रमा कभी वक्री चाल नहीं चलते, जबकि राहु और केतु सदैव वक्री चाल ही चलते है |



ग्रहो का गोचर


जब कोई ग्रह अपनी सामान्य चाल से राशि परिवर्तन करता है | अर्थात एक राशि से दूसरी राशि में जाता है, उसे गोचर कहते है | बता दे सभी ग्रह समय समय अपनी सामान्य गति से राशि परिवर्तन करते है | इस परिवर्तन का मनुष्य जीवन पर काफी प्रभाव पड़ता है |

ग्रहो के राशि परिवर्तन की अवधि


वक्री और गोचर का प्रभाव
बता दे वक्री ग्रह को लेकर विद्वानों में भिन्न भिन्न मत देखने को मिलते है | कुछ का मानना है कि वक्री ग्रह उल्टी चाल के कारण उच्च राशि में नीच का फल देता है और नीच राशि में उच्च का फल देता है | वहीँ कुछ का मानना है कि वक्री ग्रह सदैव नकारात्मक फल ही देता है | इसके अलावा गोचर में ग्रह उच्च राशि में शुभ फल देता है और नीच राशि में अशुभ फल देता है |
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